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...ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਫੁਲਵਾੜੀ ....

Wednesday, 12 August 2009

हमे फिर यादआया वो जमाना


हमे फिर याद आया वो जमाना
हमे फिर याद आया वो जमाना ,किसी के दिल में था अपना ठिकाना .
हुस्न की देवी थी या वो परी थी ,  उस से शरमाया करती चांदनी थी .
उसे अपने से  लगते थे सितारे ,सभी  गुलशन के गुल जिसको थे प्यारे.
सभी उसकी गली के थे दीवाने ,उसीकी और सब के थे निशाने.
जवानी की अजब थी ताजगी वो , हुस्न में थी अजब सी सादगी वो .
कभी मिश्री से बोलों का सुनाना,कभी खुद रूठना खुद मान जाना.
कभी हाथों में ले के हाथ मेरा , दुआ  करना न छूटे साथ मेरा .
कभी बच्चों सी जिद कर रूठ जाना ,कभी पुचकारना उसको मनाना .
कभी, बस जागना,उसको जगाना , लगाकर टकटकी बस देखे जाना. 
वो उस की झील से भी गहरी आँखें , अत्र में डूबी वो मदहोश साँसें .
परी सूरत को पाना चाहता था , उसे घर अपने लाना चाहता था .
मगर ये ख्वाब शीशे से भी नाज़ुक, समय का जब पडा इन पर था चाबुक .
बिखरकर दिल में धसते जा रहे हैं ,जख्म नासूर बनते जा रहे हैं .
उन्हें आवाज़ देना काम मेरा,  सुनey या न सुनey पैगाम  मेरा. 
जला कर दीप उम्मीदों के मैंने ,रखा सम्भाल यादों का खजाना. 
 
आपकी राय का मुन्तजिर दीप जीर्वी   
 

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