JEE AAIAAN NOOO...

...ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਫੁਲਵਾੜੀ ....

Tuesday, 5 March 2013

...सिसकती हैं

हाय मेरी नगरी में बेटीयां सिसकती हैं
खेत से जुदा होकर रोटीयाँ सिसकती हैं .

वो जमाना गुज़रा के चीर  को था जब खींचा
आज तक वो 'पाँसे  की गोटियां' सिसकती हैं

जब कि बच्चा भूखा हो ,बिलबिलाए रोटी को ,
तब तो माँ  के ह्रदय की .बोटियाँ सिसकती हैं .

जब कफन शहीदों का लूट क्र कोई खाए
तब हिमालय बाबा की चोटियाँ सिसकती हैं .

उन की मुर्गे मिलते हैं वो क्या जाने पीड़ा को ,
वो क्या जाने मुर्गों की बोटियाँ सिसकती हैं .

एक माल -ओ -जर ले ले पेटियों को भरते हैं ;
इक तरफ तो कुमकुम को बेटियाँ सिसकती हैं

deepzirvi
9815524600
http://chitravli.blogspot.com/

http://www.facebook.com/deep.zirvi.5

No comments: