हाय मेरी नगरी में बेटीयां सिसकती हैं
खेत से जुदा होकर रोटीयाँ सिसकती हैं .
वो जमाना गुज़रा के चीर को था जब खींचा
आज तक वो 'पाँसे की गोटियां' सिसकती हैं
जब कि बच्चा भूखा हो ,बिलबिलाए रोटी को ,
तब तो माँ के ह्रदय की .बोटियाँ सिसकती हैं .
जब कफन शहीदों का लूट क्र कोई खाए
तब हिमालय बाबा की चोटियाँ सिसकती हैं .
उन की मुर्गे मिलते हैं वो क्या जाने पीड़ा को ,
वो क्या जाने मुर्गों की बोटियाँ सिसकती हैं .
एक माल -ओ -जर ले ले पेटियों को भरते हैं ;
इक तरफ तो कुमकुम को बेटियाँ सिसकती हैं
deepzirvi
9815524600
http://chitravli.blogspot.com/
http://www.facebook.com/deep.zirvi.5
खेत से जुदा होकर रोटीयाँ सिसकती हैं .
वो जमाना गुज़रा के चीर को था जब खींचा
आज तक वो 'पाँसे की गोटियां' सिसकती हैं
जब कि बच्चा भूखा हो ,बिलबिलाए रोटी को ,
तब तो माँ के ह्रदय की .बोटियाँ सिसकती हैं .
जब कफन शहीदों का लूट क्र कोई खाए
तब हिमालय बाबा की चोटियाँ सिसकती हैं .
उन की मुर्गे मिलते हैं वो क्या जाने पीड़ा को ,
वो क्या जाने मुर्गों की बोटियाँ सिसकती हैं .
एक माल -ओ -जर ले ले पेटियों को भरते हैं ;
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