
शाख से टूटकर कहाँ आया ,
बस हवा ले चली जहां चाहा
हम ने देखी हैं वो बहारें भी ,
शफकथों का था जब घना साया ,
बाग़बान था तो थी बहारें भी ,
अब है गुलशन पे मौत का साया .
पीले पत्तों का कोई दर्द सुने ,
दर्द हद से है अब तो बढ़ आया .
बाग़बान ही कली मसलने लगे ,
दिल बहारों का देखो bhar आया
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